Not known Details About Shodashi
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The day is observed with great reverence, as followers stop by temples, provide prayers, and take part in communal worship activities like darshans and jagratas.
सा नित्यं रोगशान्त्यै प्रभवतु ललिताधीश्वरी चित्प्रकाशा ॥८॥
॥ इति श्रीत्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
ह्रींमन्त्रान्तैस्त्रिकूटैः स्थिरतरमतिभिर्धार्यमाणां ज्वलन्तीं
Shodashi’s Electricity fosters empathy and kindness, reminding devotees to strategy Other people with comprehension and compassion. This benefit encourages harmonious associations, supporting a loving approach to interactions and fostering unity in household, friendships, and Group.
उत्तीर्णाख्याभिरुपास्य पाति शुभदे सर्वार्थ-सिद्धि-प्रदे ।
षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी का जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।
लक्षं जस्वापि यस्या मनुवरमणिमासिद्धिमन्तो महान्तः
Inside the pursuit of spiritual enlightenment, the journey starts Using the awakening of spiritual consciousness. This First awakening is crucial for aspirants who will be in the onset of their path, guiding them to recognize the divine consciousness that permeates all beings.
She is depicted as being a 16-year-old Woman having a dusky, pink, or gold complexion and a 3rd eye on her forehead. She is among the 10 Mahavidyas which is revered for her elegance and electricity.
देव्यास्त्वखण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः ॥१३॥
केयं कस्मात्क्व केनेति सरूपारूपभावनाम् ॥९॥
भर्त्री स्वानुप्रवेशाद्वियदनिलमुखैः पञ्चभूतैः स्वसृष्टैः ।
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक read more विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।